5 Simple Statements About Shodashi Explained

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ज्येष्ठाङ्गबाहुहृत्कण्ठकटिपादनिवासिनीम् ॥७॥

इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?

देयान्मे शुभवस्त्रा करचलवलया वल्लकीं वादयन्ती ॥१॥

Darshans and Jagratas are pivotal in fostering a way of Local community and spiritual solidarity amid devotees. Throughout these situations, the collective Vitality and devotion are palpable, as participants engage in numerous sorts of worship and celebration.

Shodashi’s Vitality fosters empathy and kindness, reminding devotees to technique Many others with comprehension and compassion. This profit encourages harmonious interactions, supporting a loving approach to interactions and fostering unity in household, friendships, and Local community.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥२॥

षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।

Worshipping Goddess Shodashi is not just about trying to get product Positive aspects but will also with regard to the inner transformation and realization from the self.

हार्दं शोकातिरेकं शमयतु ललिताघीश्वरी पाशहस्ता ॥५॥

नाना-मन्त्र-रहस्य-विद्भिरखिलैरन्वासितं योगिभिः

यह देवी अत्यंत सुन्दर रूप वाली सोलह वर्षीय युवती के रूप में विद्यमान हैं। जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) में सर्वाधिक सुन्दर, मनोहर, चिर यौवन वाली हैं। जो आज भी यौवनावस्था धारण किये हुए है, तथा click here सोलह कला से पूर्ण सम्पन्न है। सोलह अंक जोकि पूर्णतः का प्रतीक है। सोलह की संख्या में प्रत्येक तत्व पूर्ण माना जाता हैं।

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥११॥

Action 2: Get an image of Mahavidya Shodashi and position some flowers in front of her. Provide incense sticks to her by lights exactly the same before her image.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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